Monday, February 17, 2014

आज की कविता
डॉ. प्रमोद कुमार दीक्षित
तुम अनंत ,तुम महा शुन्य
तुम महाकाल,विकराल
प्रस्तरकर -सुकुमार 
अनन्य -प्रामाण्य
सुरम्य -सुनम्य
अकाट्य -सुभेद्य
महा अणु-परमाणु
दिग - दिगंत ,
ब्रह्मांडेतर
परमाबु-सुक्ष्म
में तुम में
तुम मुझ में
धन्यवाद हे इश्वर !
मुझमे समाने के लिए
मुझे इतना बड़ा बनाने के लिए..!

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