Wednesday, February 12, 2014

प्रमोद दीक्षित
तुम्हे कुछ याद नहीं प्रिये
न मिलने का दिन न बिछड़ने का दिन
वो पथ भी याद नहीं जहा हम
घूमा करते थे ,निरर्थक,निरुद्देश्य 
वो ढाबा,जसमे चीतल रहते थे
वो गंगा घाट जहा हम पानी में
डुबकी लगा कर आलिंगनबद्ध होते थे
वो सपने भी याद नहीं जो साथ साथ देखे
वो जन्मदिन कि भेंटे खोलने कि जल्दी
वो चॉकलेट खाने की मस्ती
वो टेडी वो बार्बी
वो ...कुछ भी तो याद नहीं
आज एक कॉल की प्रतीक्षा रही
नहीं आयी.. याद आयी
प्रतीक्षा गहरायी
चलो कोई बात नहीं मिलन दिवस शुभ हो
जानता हु कोई तो मजबूरी होगी...

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