Wednesday, May 21, 2014

ऐ मेरे बचपन ,कैसे भूलूँ तेरी यादें
क्या क्या याद करुँ,अनगिनत यादें
एक मौसी ,जो छोटी कहलाती थी
पर मुझ से पांच साल बड़ी थी
मेरी बेस्ट  फ्रेंड ,मुझे खूब घुमाती थी
में पांच ,वो दस ,मिल कर
पंद्रह साल का धमाल मचाती थी !
वो इंजन ,में डिब्बा ,खुद ट्रैन खुद यात्री
पहले चपत लगाती,फिर प्यार करती
में रूठता वो मनाती,में मनाता तो नखरे करती .
उसकी बहिन लाली ,हुक्के की निगाली..
कुछ मोटी, कुछ काली ,मुछड मौसा की घरवाली .
नानी की अँधेरी कोठरी  में,दिए की रौशनी में
मेरे लिए दोनों मिल कर चाय बनाती
वो अमृत ,फिर नहीं मिला ,तमाम टी बैग्स की कसम
उनके  पिता को में मामा कहता
उनके कंधे पर चढ़ कर ,इटावा की नुमायश घूमता
टिकसी मंदिर जाता और छेराहे के नन्हे मुन्ने समोसे खाता
एक परात जैसे पेट वाला हलवाई समोसे बनाता
में उसे खूब  चिढ़ाता ,वो चिढ़ता तो में खुश हो जाता
इटावा की बसौंधी ,मेरी नानी की प्रिय वस्तु
छोटी मौसी खा जाती फिर में उनकी पिटाई करता
केरोसीन की लालटेनकी वो गंध ,अभी भी जैसे बाकी है
सारे deo  के ऊपर बचपन की गंध अभी बाकी है 

Tuesday, May 20, 2014



आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
२० मई २०१४
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गलत होगा अगर कहूँ कि 
तुम दिल की धड़कन में रहती हो
धड़कन ही तुम हो
गलत होगा अगर कहूँ कि
तुम आँखों में बस गयी हो
आँखों की रौशनी ही तुम हो
तुम्हारे हीरास में पगा हूँ
तुम्हारे ही रंग में रंगा हूँ
तुम ही हो वो तुम ही हो
हाँ तुम ही हो ,बस तुम ही हो
मेरी कहानी ,मेरी कविता
मेरी अतीत मेरी वर्तमान
मेरी अनजान ,मेरी नादान
तुम ही हो बस तुम ही हो

Thursday, May 8, 2014

सब कुछ सीखा हमने ,न सीखी   होशियारी
सच्च है मेरे दोस्तों ,हम सिद्ध हुए हैं अनाड़ी
कदम कदम पर झटके ,पग पग पर फरेब
भोले चेहरे ,सुन्दर मुखड़े ,सच से गुरेज़
आज्ञाकारी पीछे पीछे तोड़ते चलते विश्वास
भक्त बन कर धोखा देनेवालों से क्या आस ?
माता पिता भेजते यहाँ एक ऊंचा इंसान बनाने को
वो आते यहाँ सिर्फ दोस्ती प्यार बढ़ाने को
में ज्ञान बाँटने को कहता ,वो प्यार बाँटना सुनते
में गंभीर रहने को कहता ,वो वैसा चेहरा लगा लेते
में उन्हें  IAS  पढ़ाता,वो लगते ILU  पढ़ने