Sunday, March 30, 2014

30 MARCH 14
मेरी हाइकु .१.[हायकू जापानी छोटी कविता ]
जहाँ तुम अब नही रहती
वहाँ से गुजरने पर
दिल कुछ ज़यादा धड़कता है
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हायकू -२

नहीं कैसे कहू?
हाँ कहने का भी
मन नहीं है
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हायकू -३
मौसम सुहाना
उनके लिए
जो भीगे
और बच गए

Saturday, March 29, 2014

२९ मार्च २०१४ आज की कविता \
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -----------------------------आखिर कहा जाये दोस्ती लिए वो?
दोस्त अगर धनवान हो तो
पैसे की यारी !
दोस्त अगर लड़की हो तो 
गर्ल फ्रेंड होगी !
दोस्त अगर सुंदर हो तो
खूबसूरती की यारी,
दोस्त अगर सुंदर न हो तो
यही मिली थी ?
दोस्त अगर लड़के हो तो
लफंगो की सेना
दोस्त अगर अपने से बड़े हों तो
मतलबी इंसान
दोस्त अगर ज़यादा योग्य हों तो
टूशन ले रहा हे मुफ्त में
दोस्त कम योग्य हो तो
टूशन दे रहा पागल मुफ्त में !
दोस्ती न करो तो खडूस इंसान
ज़यादा दोस्त हों तो पार्टी एनिमल !
इसलिए दोस्तों ! जो मर्ज़ी आये करो
पर दोस्ती उस से करो
जिसके लिए दिल गवाही दे
जाति, धर्मं,लिंग ,जन्मस्थान न देखो
उम्र, आर्थिक स्थिति ,शिक्षा न देखो
बस दिल देखो ,जो कहे उसको कहने दो
दोस्त को दिल में रहने दो /....

Friday, March 28, 2014

२८ मार्च २०१४ आज का अपलोड
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ---------------------
न शायर की ग़ज़ल न खिलता कमल .
न फूलों की रानी न बहारों की मलिका
वो बस मेरी है मुझे इतना काफी है 
वो मेरे दिल में है ये अहसास काफी है
वो कांच है पर हीरे से ज़यादा रोशन
वो पीतल है पर सोने से ज़यादा सुंदर
क्यों कि वो मेरी मेहबूबा है
और मेहबूबा दिल में बसने के लिए होती है
शेयर बाज़ार में जारी करने के लिए नहीं
वो जुस्तजू है मेरी वो आरज़ू है मेरी
वो हमसफ़र वो हमनफ़स है मेरी
वो दूर हो या पास हो या आसपास हो
वो अहसास है मेरी
वो मेरी शोना .मेरी मलिका ,
वो मेरी ग़ज़ल ,वो मेरी कमल
वो मेरी शायरी की जान है
वो मेरा जिस्मो जान है
मेरा मज़हबो इमान है
अल्फाज़ कम पड़ जाते है
सुर मंद पड़ जाते हें
वो सब कुछ है ,वो सब कुछ है !

Thursday, March 27, 2014

२७ मार्च २०१४ आज की पोस्ट
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -----------------------
बेटियाँ कितनी जल्दी बड़ी हो जाती हैं. जैसे अभी कल ही की बात हो, अन्वी ,मेरी पोती ,३ वर्ष कि थी २००८ मे.एक दिन प्रीती से खूब खेली फिर पूछा"आप का नाम क्या है?"
फिर कहा कि मुझे आप से बात कर के बहुत अच्छा लगा ...प्रीती,मेरी बहुत प्रिय स्टूडेंट जो अब सिर्फ यादों मे है ..

मेरे दिमाग़ से बात निकल गई थी लेकिन उसे अब तक याद है. जब मैं कंप्यूटर पे बैठा होता हूँ तो कभी कभी आ जाती है .... कभी अपनी ड्राइंग दिखाने कभी होमवर्क, कभी अपने पसंद का गाना सुनने तो कभी किसी चीज़ की फ़र्माइश ले के. पूछती है कि प्रीती दीदी कहा हें?

उस दिन की तस्वीरें देखती हुई उस ने फ़र्माइश की " बाबा.एक बार तुम ने मेरी फ़ोटो लगाई थी यहाँ... मे फोटोशॉप कर देती हू और प्रीती दीदी को भी जोड़ देती हू,फिर डेस्कटॉप अच्छा लगेगा... ?"

मैं ने कह दिया था "हाँ लगाऊँगा". फिर बात निकल गई मेरे दिमाग़ से लेकिन वो नहीं भूली. बार बार आ के देखती जब मैं कंप्यूटर पे बैठा कुछ कर रहा होता, कुछ कहे बिना चली जाती ..... शायद इस उम्मीद में कि बाबा को कुछ याद आ जाएगा. कल सुबह आख़िर उस ने कह ही दिया : कि मै अभी लगाउगी फ़ोटो और अपना लैपटॉप ले के बैठ गयी .९ साल कि बच्ची पॉवरपॉइंट पर काम करती है ,जो मुझे नहीं आता .जादू सा करती है कंप्यूटर पर पर काश वो कोई ऐसा जादू कर पाती कि उसकी प्रीती दीदी वपस आजाती ....

Wednesday, March 26, 2014

२६ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ----------------------

इस ज़ुल्फ़ को क्या कहिये
इस आँख मिचोली को क्या कहिए 
लहराये तो नागिन
थम जाये तो घटा
छा जाये तो चिलमन
हट जाये तो पूरनमासी
पेशानी पे आ जाये तो
तमाम दिल रुक जाये
अपनी सी पे आ जाये
तो काएनात थम जाये
घुंघराली हो या सीधी
ये इतनी सीधी भी नहीं
दिल में फस जाएँ तो
निकलती भी नहीं
ये रेशमी ज़ुल्फो का अँधेरा हे
खाली कोर्टेक्स क्यूटिकल
और मेडुला न समझना !
जूलॉजी में मत जाना जनाब
बिना मद के मदहोश कर देती हें ये !

Tuesday, March 25, 2014

२५ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -------------------
वो भी मेरा ही घर था ,ससुराल नही
जहा मिली थी तुम ,मेरी जीवनसाथी
सुख की ,दुःख की ,मेरी साथी 
जहा बचपन पीछे छूटा
गृहस्थी में प्रवेश किया
एक और परिवार मिला
तुम्हारे भाई ,अपनों से भी ज़यादा
तुम्हारी बहिने ,बहिनो से ज़यादा
आँखों का तारा समझने वाले
तुम्हारे माता पिता ,
दामाद का दम्भ कही विलीन हो गया
साला साली कहने का मन ही नहीं किया
बस घर का हिस्सा बन गया
वो स्थान जहा तुम्हे पहली बार देखा
वो रसोई जहा तुमने पहली बार खाना परोसा
वो बाग़ बगीचे ,वो तालाब वो मंदिर
मेरी हर प्रगति के साक्षी हें
प्यार के ,मनुहार के ,इज़हार के साक्षी हें
कितनी मन्नतें ,कितनी पूजा
इसी गाव में परवान चढ़ी
दुआए कबूल हुयी
अब कोई नहीं हे यहाँ
तुम्हारे माता पिता नहीं रहते यहाँ
दुआओ वाले हाथ नहीं उठते
चलते समय कोई ढेर सारी आशीष नहीं देता
निकलता हु जब जब यहाँ से
ज़र्रा ज़र्रा पुकारता हे
सुनता सिर्फ में हूँ या तुम सुनती हो
तुम्ही देख पाती हो आँख के भीगे किनारे
यह ४० साल का साथ है
में तुम हो चूका हूँ और तुम में
ख़ामोशी का सफ़र भी कितनी बातें करता है
ये एक किलोमीटर का गाव ,
न जाने कितनी कहानियां कह जाता है
[real pic of my second home,sasural,ujhiyani etawah,NH2 ]

Monday, March 24, 2014

२४ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -------------------
अरे प्रिये ये क्या कह दिया
प्यार को समझ ही नहीं पायी
मेरा दिल दुखा दिया
मेने माना जिसे उपासना 
तुम समझी वासना
क्या प्यार चेहरे से होता हे ?
क्या प्यार किन्ही आंकड़ो से होता हे ?
ये तो दिल से होता हे जो दिखाई नहीं देता
ये भविष्य की सुंदरता से भी नहीं होता
की कोई आगे चल कर इतनी सुंदर होगी...
इतना प्रेडिक्टिव होता तो व्यापार होता
शेयर बाज़ार होता ,फ्यूचर ट्रेडिंग होता
दलाली होती पर प्यार न होता ..
शरीर बिकते हें खुले आम
पर दिल ढूंढने पर भी नहीं मिलते
जो मिलते हें वो दिल की भाषा नहीं समझते
जागो मोहन प्यारे जागो
लोग छोड़  जाते हें मझधार में
ये दिल का विश्वास ही हे जो पार लगाता हे..!
[कविता मेरी हे पर किसी से कोई सम्बन्ध नहीं हे,बस यु ही..]

Sunday, March 23, 2014

२३ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ------------
मेरी जन्मभूमि !
एक छोटा सा क़स्बा ,
मेरी बस्ती
एक बड़ा मोहल्ला
एकता में अनेकता
मेरी जन्मभूमि कि विशेषता
1955 का ज़माना
चारो वर्ण,सब जातियां
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख,जैन
सब जलते भुनते एक दुसरे से
पर चाहे चीन का हमला हो या
नेहरू के अस्थि कलश के दर्शन
सब एक हो जाते
होली दीवाली ईद दशहरा
मिल कर खाते पीते मनाते
जैन- महावीर को हिन्दू हनुमानजी मानते
जय बजरंगबली का नारा लगाते
पाक हमले के समय इकट्ठे हो कर रेडियो सुनते
पड़ोसी की चुगलियां करते ,
आज की,यानि तब की जनरेशन को कोसते
लड़के पडोसी चाची के घर में
माँ के बनाये स्वादिष्ट व्यंजन ले कर जाते
कनखियो से घर की कन्या को भी देख आते
अगले रक्षाबंधन पर माँ राखी बंधवा देती
एक अजन्मी कहानी पर विराम लगा देती
हरे भरे पीले पीले खेत सामने
दशहरा ,बुढ़वा मंगल के मेले
लाल नीले चश्मे ,कागज़ के सांप
लंगूर की मठिया ,कमल का तालाब
लाला की कुल्फी ,मंगत की बर्फी
रस्ते में जिज्जी का घर
उनके हाथों की कचौड़ियां
५ पैसे की ढाई गुझिया
दोस्त की दी हुयी गुड़िया
बस में रोज़ आना जाना
सेंगर नदी की नाव
तैरना न आते हुए भी
डूबती लड़की को बचा लेने का होसला !
क्या भूलूं क्या याद करूं
मेरी जन्मभूमि ,तुझे सलाम !

Saturday, March 22, 2014

उम्र का १४ वां साल
1969 ...........................
मै हाई स्कूल पास कर चुका था .एडमिशन के लिए दूसरे कॉलेज जा रहा था ,बस से .बस खाली थी .मै सबसे पीछे कि सीट पर बैठ गया .मेरे पिता टिकट ले कर आये तो मुझे पीछे बैठे देखा .पास आ कर बोले "जब आगे सीट खाली हें तो कभी पीछे मत बैठना .आगे बैठने के लिए हम तुम से अच्छा कौन है?"ये जीवन का सबक था ."सारी दुनियां आगे की सीटों पर आँखें बिछाए तुम्हारा इंतज़ार कर रही है क्योकि वो आगे रहने मै डरते हें.तुम आगे के लिए ही बने हो ,वो नहीं."उनके ये वचन किसी बुद्धा या स्वामीजी से कम नहीं थे .मेने शिरोधार्य किए.और सदा अपनाया .
२२ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------
चलो आज कुछ अनैतिक करते हें
समाज जिसे पसंद न करे
गिन गिन कर वो ही करते हें
पढ़ते हें ,लिखते हें
ऐश करते हें ,मस्त रहते हें
खुश होते हें,हँसते हें,गाते हें
जीवन जीते हें ,प्यार से रहते हें
परिवार के साथ खुश रहते हें
जीवन में ऊंचे उठते हें
अच्छे अच्छे कपडे पहनते हें
अच्छा अच्छा खाते हें
ऐसा करके चलो समाज को जलाते हें
दुःख पहुंचाते हें ,ठेस पँहुचाते हें
चलो कुछ अनैतिक करते हें

Friday, March 21, 2014

२१ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -----------------------------------कैसा हो इ-वसंत
देखो आया है इ-वसंत
भौंरे नहीं ,कोयल नहीं,
साइलेंट मोड के सेल की घूं घूं 
मंद पवन,सुगन्धित बयार नहीं
deo कि मस्त नशीली खुश्बू
पपीहा नहीं ,चातक नहीं
वाट्स एप और ऍफ़ बी
पीली पीली सरसों नहीं
सांवरी सलोनी घटा नहीं
पर फिर भी कितना प्यारा है वसंत !
क्योकि हम भी वही
तुम भी वही ,प्यार की डोरी भी वही
दुनिया बदले तो बदल जाये
वादियो में हो या ऑनलाइन
वसंत तो आता है !

Thursday, March 20, 2014

२० मार्च २०१४ आज की कविता एवं मेरा सार्वजानिक अनुभव
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ----------------ये मेरे बचपन की बात है
सुना था कि कोई महबबूबा होती है
जिसके आने से बहार आ जाती है
कलियाँ खिल जाती हें 
मौसम की कीमत बढ़ जाती है
घुंघरू बजने लगते हें
फूल महक उठते हें
कम से कम फ़िल्मी गाने सुन कर
ऐसा ही लगता था
दिन रात सोचता था कि
कैसी होगी ,ऐसी होगी
चांदी जैसा रंग सोने जैसे बाल
लजाते गुलाबी गाल
यार कितना रोमांटिक था
मेरा बचपन का ख्वाब !
कब मिलेगी ?कब मिलेगी?
सोचते सोचते बड़ा हुआ
मेरे सपने सच होते है
तो ये भी होना ही था
पर एक परी थी ख्वाब में
जो अभी भी आती है
गुलाबी पंखो वाली
मुझसे बातें करती है
और मेरी उम्र नहीं बढ़ने देती !

Wednesday, March 19, 2014

१९ मार्च २०१४ ..आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ----------
यह मन उदास है
कोई आसपास है
धड़कन सांसो में 
एहसासों में
सुनायी देती है
कुछ लिखने का मन नहीं है
कुछ कहने का मन नहीं है
कोई मुझे समझता नहीं है
गुनगुनाहट सुनता नहीं है
रिश्ते फीके लगते है
शब्द रीते लगते है
प्यार शब्द शब्दकोष से
गायब हो गया लगता है
कुछ एहसास हाथों से
फिसल गया लगता है
माफ़ करना दोस्त मेरे
कुछ दिन तुम्हारे बिना
रहने को दिल करता है /
[not पर्सनल ]

Tuesday, March 18, 2014

१७ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------

राम के चरणस्पर्श से मुक्त अहल्या
कान्हा के होठों से गिरी मुरली 
दोनों ही संसार ने बिसरा दी
दोनों को ही नहीं अपनाया
एक को कान्हा ने
एक को ज़माने ने
एक मुक्ता ,एक त्यक्ता
एक ख्यात,एक अज्ञात
एक होठो से स्पृशित सदा
एक स्पर्श के बाद विस्मृत सदा
भूल ही जाते हें सब
रहा हो कोई भी युग !

Sunday, March 16, 2014

अँर्तमन की झंकारोँ मेँ गीत कभी सुन लेता हूँ

शब्दोँ के धागोँ से कुछ सपने मैँ भी बुन लेता हूँ

तुम्हेँ लगे है कविता सी जो कुछ मैँ कहता हूँ देखो

काव्य छिपा है हर जीवन मेँ सारी प्रकृति ही तो उपवन है

इस उपवन के वृश्रोँ से कुछ पुष्प यूहीँ चुन लेता हूँ
Its mine
१६ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------ज़माना ही ऐसा है
मत करो किसी को प्यार
ज़माना ही ऐसा है
होता नहीं किसी को भरोसा
ज़माना ही ऐसा है 
मत करो विश्वास किसी पर
ज़माना ही ऐसा है
मत हो किसी पर निसार
ज़माना ही ऐसा है
देखता नहीं कोई आंसू तुम्हारे
ज़माना ही ऐसा है
दोष न दो ज़माने को
ज़माना ही ऐसा है
आखिर है तो ये हमसे
इसीलिए ......
ज़माना ऐसा है...!

Saturday, March 15, 2014

१५ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
---------------------------------होली कि मान मनोव्वल
देखो प्रिय तुम रूठा न करो
हम तुम्हारे हें भरोसा करो 
तुम्हे सोचा है,तुम्हे जाना है
तुम्हे पाया है,तुम्हे माना है
तुम साज़ की आवाज़ हो
तुम हमनवां ,हमराज़ हो
मेरी प्रियतमा मेरी हमसफ़र
उन रहमतों की बौछार हो
बहुत हुआ अब मान भी जाओ
मन की बातें जान भी जाओ
होली है कुछ रंग लगाओ
मेरे रंग में फिर रंग जाओ /...

Friday, March 14, 2014

१४ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित -------------------एहसान मेरे दिल पर
उतना ही उपकार तुम्हारा
जितना साथ निभाया
उतना ही एहसान तुम्हारा
जितना तुमने चाहा
सबकी दोस्ती के रंग अलग हें
सबकी चाहत के अक्स अलग हें
तुम सब मेरे इंद्रधनुष
तुम सब मेरे सितारे
जीवन रंग डाला तुमने
प्यारे दोस्त हमारे
शिकायत क्या करू तुमसे
कि तुम याद नहीं करते
तुम जितने दिन रहे मेरे साथ
नियमत थी
दोस्त बनी,बेटी बनी,बहन बनी
तुम किसी कि अमानत थी
अपनाया ,तुमने प्यार से
मेरी देवदूत ,मेरी एंजेल,
तुम न होती तो दुनिया कैसी होती ?
में सोचता ही नहीं
क्योकि , तुम क्यों न होती?
तुम्हे  तो होना ही था मेरी ज़िंदगी में .
मेरी खुश नसीब   बंदगी में

Thursday, March 13, 2014

कैसे हें ग़ज़िआबाद के ये IAS PCS   छात्र ,,
आज दिल्ली कि एक कोचिंग कि सिलेक्शन लिस्ट में अपनी 2 स्टूडेंट्स कि फ़ोटो देखी.उन्होंने बताया तक नहीं कि उनका सिलेक्शन हुआ है .जो संविधान को पढ़ते हुए रोती थी और जिसे मेने संविधान ऐसे पढ़ाया कि वो संविधान की महारथी हो गयी .इको की बुक फाड़ डाली थी उसने की मुझे नहीं पढ़ना .रोज़ 1 घंटा एक्स्ट्रा टाइम दिया तब दो साल में बहुत ब्रिलिएंट स्टूडेंट बन गयी ..शिखा .अब शिखर भूल गयी .बहुत हें ऐसे निकृष्ट स्टूडेंट.
अरविन्द भाटी जैसे कई लोग हें जो कहते हें"अच्छा नहीं पढ़ाते"टाइम से पहले ही दिल्ली चले गए IAS बन ने !यहाँ रहे तब तक एक शब्द बोले नहीं,एक क्वेश्चन पूछा,एक टेस्ट नहीं दिया महानुभाव ने ..और क्या पढ़ना चाहते हे ये लोग?आईएएस मज़ाक समझ रखा है इन लीगो ने?.रजत दिल्ली की कोचिंग में घूम कर यहाँ आया तब बोला की वो सब उल्लू बनाते हें ,पढ़ना है तो शिखर में आना चाहिए .
सब एक से नहीं होते पर ज़्यादातर ऐसे ही हें .तुम सब कुछ तो ह्यूमन फीलिंग्स सीखो .कैसे दुनिया में सफल होगे?
सच में कोई अहसान नहीं .पर इस वक़्त जो में तुम सब के बारे में सोच रहा हू वो तो फीस स्ट्रक्चर में नहीं लिखा है.तुम क्लास में नहीं आते हो तो में चिंतित हो जाता हू ये भी फीस में शामिल नहीं है.तुम्हे इतना मोटीवेट करना भी फीस में कवर नहीं होता .तुम्हारी सारी समस्याओ को में सोल्व करना चाहता हू इसकी कितनी फीस दी है जनाब?अरे कब तक निष्ठुर ग़ज़िआबदी बने रहोगे?कुछ फीलिंग भी सीखो.इंसानी रिश्ते जानो .सरकारी नोकरी कैसे करोगे ?बॉस तो कुछ नहीं केअर करेगा फिर भी अहसानमंद रहना पड़ेगा ,तब क्या करोगे ,बाबाजी का....?
----------------------------------
--------------------------शिखर आई ए एस अकादमी 2001  में मेने स्थापित की थी .कानपूर में उत्कर्ष अकादमी 1990  में स्थापित करने का अनुभव बहुत अच्छा  रहा था अतःसोचा कि यहाँ भी प्रारम्भ की जाये .अनुभव यहाँ भी अच्छा रहा पर छात्रों में वो गुरु के प्रति श्रद्धा नहीं हे जो पूर्वी उत्तेर प्रदेश में हे .यहाँ कोई सेलेक्ट हो जाने पर सूचना तक नहीं देता .कोई किसी एग्जाम में बैठने पर रोल नंबर नहीं बताता .सेलेक्ट होने पर श्रद्धा प्रकट करना तो दूर की बात है ये भी नहीं कहते कि वो शिखर के छात्र थे .में योग्य छात्रों को अनेक वर्ष कि फ्री कोचिंग तक देता हू ,मेरा हर पल उन्ही के लिए है फीस इस बात कि तो नहीं लेता  पर 2012  PCS  के रिजल्ट में डिप्टी कलेक्टर हुयी एक लड़की ने साफ़ कह दिया कि वो किसी कोचिंग में नहीं पढ़ी.वो मेरी 2010  कि स्टूडेंट है .फ़ोटो हें क्लास के ,फीस कि रसीद है.वो DLP  बैच में थी ,सन्डे में क्लास होता था .उसकी क्लास में प्रियंका त्यागी, सरिता ,धीरज,संतोष,अक्षय राठी ,आदि पढ़ते थे ,वो शपथ पर बयान देने को तैयार हें पर श्रद्धा क्लेम नहीं की जाती.में ऐसे छात्रों का फ़ोटो ,नाम नहीं प्रकाशित करता.वो 2010  में भी प्री में सफल हुयी थी ,मेने हिंदी के नोट्स फोटोकॉपी करा कर दिए थे,जिसका भुगतान भी नहीं किया .इसके बाद कोई संपर्क नहीं किया .में उस को शुभकामना  देता हू पर  सरकारी नोकरी ऐसे नहीं होती .एक बहुत विनम्र स्वाभाव रखना होता है.मेने फीस ली कोई अहसान नहीं किआ पर कानपूर लखनऊ वाले भी फीस देते हें .राहुल पाण्डेय मुझसे केवल फोन  पर मुझसे पूछता रहता था ,अब झारखण्ड में SDM  है .मुझे गुरु मानता है .मेने उसका नाम किसी सिलेक्शन लिस्ट में नहीं दिया क्युकी मेने नहीं पढ़ाया .नवीन कुमार असिस्टेंट कमिश्नर भी मुझे गुरु मानते हें ,मेने ३ दिन गाइड किआ था .मेने उसका नाम भी लिस्ट में कभी नहीं दिया पर जीने भरपूर टाइम दिया,केअर कंसर्न दी जो फीस के बदले नहीं मिलती, वो मुकर जाते है कि वो मेरे छात्र ही नहीं है ..नोकरी कि बहुत अच्छी शुरुआत...झूठ से !शाबास!

१३ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------------------
हर असफलता कहती हे कि प्रयास में कुछ कमी है
पर ये नहीं कहती कि क्या कमी है
खोजना यही है 
ढूंढना यही है
दोष नहीं नहीं देना है
परिस्थितियों को
परीक्षकों को
परिचितों को
बदलना आसान नहीं इन्हे
बदलना है खुद को
खुद के तरीको को
उस गहराई में जा कर
जहाँ सिर्फ मोती मिलते हें
उस गहराई में जहाँ
कोयले हीरे बनते हें
पीछे छोडना दुनिया को
नामुमकिन नहीं आसान है
एक न धीमी पड़ने वाली अगन
एक न ख़त्म होने वाली लगन
फिर से कूदपड़ो समर में .
जीत का शंखनाद करो
विजयी भव !
Pyaar , mohabbat dhokha hai....
Kab kinse isko roka hai...,
Na pad iske jaal mein ....
Padhle beta mauka hai ...!
Jeet le tu sabka dil ....
Haasil kar apni manzil ...
Sapne dekhe hai to pura kar ....
Aadhi padhai na chodha kar ....
Chod de tu saare aib ....
Peeche mudkar naa dekh ...
Kal khud kismat ghar ayegi ....
Kadmo me khushiya layegiii.......
By me .....

Wednesday, March 12, 2014

 ११ मार्च २०१४ आज की कविता 
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ---------------
माता पिता,जन्म ही नही देते 

सब कुछ देते हें 
समाज देते हें,नाम देते हें 
घर देते हें ,आत्मा देते हें 
ज्ञान ,संस्कार को आकार देते हें 
सपनो को साकार करते हे 
पिता की कठोरता ,माँ की नरमी 
पिता का अनुशासन,माँ का प्यार 
बहुत याद आता है,जब 
कोई हमसे दूर चला जाता है
पर उनका प्यार बरसता रहता है
हमारी रक्षा करता रहता है
महसूस करो प्रिया 
वो तुम्हारे आसपास हे न !
उनका प्यार तुम्हारे पास हे न 
उनके सपने के रूप में 
पूरा करो उसे ,महसूस करो
उनके आशीष भरे हाथ को

१२ मार्च २०१४ आज की व्यंग्य रचना
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
--------------------------------------------------------सामान्य हिंदी ज़रा हट के
प्रश्न १.निम्नलिखित अवतरण कि व्याख्या कीजिये और शीर्षक प्रदान कीजिये
"जो तेनु वेख्या साँसे गयी थम सारी सारी रात सोये ना हम"
१.उत्तर शीर्षक ..तेरी सूरत मेरी आँखें
पहली बात तो ये हे कि ये सिलेबस के बाहर हे ,क्युकी ये पंजाबी हे .फिर भी संचित ज्ञान के आधार पर लिख रहा हू...
कवि यहाँ बता रहा है कि हे सामने वाले व्यक्ति !जैसे ही तुम्हारे दर्शन हुए हें ,मेरी ह्रदय गति रुक गयी हे .तुम इतने भयानक प्राणी हो कि में सपने में तुम्हे देखने के डर से निद्रा मग्न नहीं हो पाया .मुझे मायोकार्डियल इंफार्कशन होते होते बचा हे.में रुपये ३०,००० /-का डॉ का बिल वैधानिक नोटिस के साथ भेज रहा हू .चुकाने का कष्ट करना वरना सचमुच का कष्ट शुरू हो जाये गा.आशा है आप आनंद सहित होंगे !न भी हों तो मेनू की?और हाँ मेरा भाई "भाई "है .जो तू ओने वेख्या ता सब कुछ थम जाना हे...

Sunday, March 9, 2014

०९ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
---------------------------------------केदारनाथ आपदा
किया है विराट से साक्षात्कार
जल ही जल ,पर्वत पर पारावार 
महोदधि अपार ,असार संसार
करना था शिव से साक्षात्कार
देख लिया तांडव साकार
जल ही जीवन है ,सुना था
पर वहाँ तो जल ही विनाश था
सहस्र बाहें रक्षा के लिए थी
देवो के देव ,तुमने तो विनाश कर दिया !
आस्था का संहार कर दिया
तांडव का क्या यही अर्थ है?
तुम्हारी शरण में मारे गए
अनन्य भक्त तुम्हारे
तुम्हारा नाम ले कर
चले गए धाम तुम्हारे.!

Saturday, March 8, 2014

2.मेरी दोस्त ने ऐसे रंग बदला ...प्रमोद दीक्षित
---------------------------------------------
मेरी एक दोस्त थी,मीरा दीक्षित .में उसके साथ ही पढ़ने जाता था .हाथ में हाथ डाल कर २० मिनट में हैम पहुचते थे ,तब तक हज़ारो बातें हो जाती थी.एक दिन मेने उसके घर पहुच कर उसे बुलाया तो वो कुछ बदली बदली सी लगी...चल तो दी पर आगे जा कर बोली"में अलग रस्ते से जाउगी,तुम अलग रास्ते से आना ."मेरी समझ में कुछ नहीं आया पर वो बड़ी थी और पहले कभी मेरी पिटाई भी कर चुकी थी.अतः मेने चुपचाप मान लिया .में 6 साल का बालक ,वो 7 की बड़ी सी लड़की !स्कूल पंहुचा तो पता लगा कि में कल अब्सेंट था तब उसको मॉनिटर बना दिया गया था यानि हेड गर्ल ,अब में बेचारा आम आदमी !उस से कोई मुकाबिला ही नहीं था ,उसका रास्ता अलग,मेरा अलग ...मुझे बुरा लगा ...माँ से बताया तो बोली कोई बात नहीं बहुत दोस्त मिलेगी ,रो मत ....में हमेशा से लॉ ऑफ़ अट्रैक्शन लगानेवाला इंसान..!अगले ही दिन रीता दीक्षित ने मेरा लंच खा लिया ,और मुँह फुला कर बैठ गयी ,मेरा खाना गया पर मनाया मेने ही ..आखिर में लड़कियो का सम्मान जो करता था ...वो मेरी दोस्त बन गयी....अब मीरा अकेली पड़ गयी थी अपने घमंडी स्वाभाव के कारण.अगले दिन ही मुझसे माफी मांगी और मूंगफली भी ऑफर की पर मेने कह दिया "न मीरा न ,और नहीं बस और नहीं...."!
०८ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित =========
आज भी गुज़रता हूँ उन राहों से
जिनमे तुम साथ होती थी
में तुम्हारे ख्यालों में होता था 
तुम मेरे ख्यालों में होती थी
रोशन चेहरा ,किताबी ऑंखें
उड़ती ज़ुल्फ़ से ढकी खुमारी ऑंखें
ज़माने से चोरी किये वो पल
सपनो को ज़मीं पर लाते वो पल
रुखसत हो चुके हें खो चुके हें
अतीत की बातें हो चुके हें
कसक उठती हे उन राहों पर
फिर भी बार बार चलने को जी चाहता हे
मालूम है कि तुम नहीं हो
पर न जाने क्यों लगता है कि
तुम सामने से आती हुई
मिल जाओगी ,कभी न जाने के लिए
पर तुम अब सिर्फ मौजूद हो
मेरे लैपटॉप का पासवर्ड बन कर
जिसे में बड़े हलके से टाइप करता हूँ
क्योकि तुम्हे बहुत ज़ख़म दिए हें ज़माने ने
में उन्हें हौले से सहला सकूं शायद ....

Friday, March 7, 2014

१.मेरी पहली दोस्त
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           मेरी सारी दोस्त लड़किया ही रही हें ,माँ कहती थी कि 1955  में मेरे मोहल्ले में मेरे अलावा सिर्फ लड़किया ही पैदा हुई थी .क्या किस्मत थी !!
                      मेरी पहली दोस्त नीलू थी ,५ साल का था में वो ४ साल की,उसने मुझे गुड़िया बनाना सिखाया ,फूलो की माला बना कर मुझे रोज़ पहनाती थी ,वो उस जाति कि थी जिसे SC  कहते है .मेरे माता पिता भेद भाव नहीं मानते थे .मेरे पडोसी ज़रूर कहते थे की ऊँची जात का लड़का जाति भ्रष्ट हो जायेगा.पर मेरे पिता इतने क्रोधी थे कि किसी की हिम्मत नहीं थी उनसे कुछ कहने की .नीलू मेरी बेस्ट फ्रेंड थी.वो सांवली, मोटी ,थी पर थी तो मेरी दोस्त ,उस से उषा नाम कि लड़की जलती थी ,उसकी भी  मुझ से दोस्ती थी.मुझे ये समझ में नहीं आता था कि दोस्त आपस में जलती क्यों थी,आखिर राखी  बांधने पर सबको एक एक आना [सिक्का]मिलता ही था .....
                        हा हा हा !तब दोस्त लड़किया बहने होती थी...ये उस ज़माने कि बात है जब चाँद  में पारियां रहती थी...!

०७ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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तुम ही हो ,बस तुम ही हो
क्यों नहीं समझती 
कि बस तुम ही हो
यहाँ भी हो,वह भी हो,
जहाँ भी हो,बस मेरी ही हो
कोई कहे कि तुम उसकी हो
पर सब जानते है कि तुम किसकी हो
आत्मा में हो ,प्राण में हो
स्वर में हो झंकार में हो
गंध में हो संस्कार में हो
मेरी हो बस मेरी हो .
हाँ मेरी हो ,मेरी हो
कएनात् में रंग ,
संगीत में स्वर
फूलों में खुश्बू
असमान में नीलिमा
सागर कि गहराई में
तुम ही तुम दिखाई देती हो
बिछड़ने की बात नहीं
तुम तो मेरे दिल में रहती हो ...

Thursday, March 6, 2014

०६ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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देखी हें कभी आंसुओ की मुस्कान?
नहीं देखी तो क्या देखा?
एक बड़ी सफलता पा के तो देखो
माँ की आँखों में देख लेना
देखी हे सपनो की उड़ान ?
नहीं देखी तो क्या देखा?
रातो को जाग के देखो
सपनो को पंख लग जायेगे
देखी हे कभी मासूम शरारत ?
नन्हे बच्चे की आँखों में देखो न
देखी हे कभी हज़ार सूरजो की चमक?
उस भगवन को ह्रदय में बसा कर तो देखो
रंगो की खुश्बू को सुना हे कभी?
किसी को दिल से अपना कर तो देखो...

Wednesday, March 5, 2014

०५ मार्च २०१४ ..आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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मेरा धर्म संगीत है ,नाद ,स्वर,सरगम
यही मेरे निगम आगम 
स्वर आनंद,परमानन्द नाद ब्रह्म ,
झंकृत अलंकृत,परम ब्रह्म ,
शिशु कि किलकारी,
मयूरध्वनि,मेघ गर्जन ,
बरसात की खुशबु
बच्चो का शोर
सर्दी की भोर
असमान की लाली
कानो की बाली
सब में हे संगीत
अनहद नाद
इश्वर की आवाज़
मेरे लिए हे सिर्फ मेरे लिए !

FREEDOM...Garima Khurana


CARRY CHILD IN YOUR ARMS ..HE TOO WANNA GET DOWN....
PULL SOMEONE OR ANYONE AND SEND TO ALOOFNESS THAT SOMEONE
TOO WANNA COME OUT...
FLOW OF WATER TOO SPEEDILY FLOWS TOWARDS THE OPEN SIDE ...
LAVA TOO COME OUT THOUGH AFTER MILLION YEARS..

FREEDOM IS EVER WANTED ..EVERYWHERE..
SO ENJOY UR BEST WHY PEEPING IN OTHERS NEST ....
U SAID YOU ARE THE KING ..AND WANNA B BIG ..

WE ALL ARE GUEST OF GOD ...BE THE BIRD OF YOUR NEST ..
WHY CUTTING THE WINGS OF OTHER GUEST ..
FLY AND LET FLY..

LET ALL THE WINGS SPREAD DIFFERENT  WAYS AND COLORS ..

WHY U BOND EVERYTHING INTO MOLDS OF BLACK AND WHITE.
THERE ARE ALSO SHADES OF GREY..