१३ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------------------
हर असफलता कहती हे कि प्रयास में कुछ कमी है
पर ये नहीं कहती कि क्या कमी है
खोजना यही है
ढूंढना यही है
दोष नहीं नहीं देना है
परिस्थितियों को
परीक्षकों को
परिचितों को
बदलना आसान नहीं इन्हे
बदलना है खुद को
खुद के तरीको को
उस गहराई में जा कर
जहाँ सिर्फ मोती मिलते हें
उस गहराई में जहाँ
कोयले हीरे बनते हें
पीछे छोडना दुनिया को
नामुमकिन नहीं आसान है
एक न धीमी पड़ने वाली अगन
एक न ख़त्म होने वाली लगन
फिर से कूदपड़ो समर में .
जीत का शंखनाद करो
विजयी भव !
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------------------
हर असफलता कहती हे कि प्रयास में कुछ कमी है
पर ये नहीं कहती कि क्या कमी है
खोजना यही है
ढूंढना यही है
दोष नहीं नहीं देना है
परिस्थितियों को
परीक्षकों को
परिचितों को
बदलना आसान नहीं इन्हे
बदलना है खुद को
खुद के तरीको को
उस गहराई में जा कर
जहाँ सिर्फ मोती मिलते हें
उस गहराई में जहाँ
कोयले हीरे बनते हें
पीछे छोडना दुनिया को
नामुमकिन नहीं आसान है
एक न धीमी पड़ने वाली अगन
एक न ख़त्म होने वाली लगन
फिर से कूदपड़ो समर में .
जीत का शंखनाद करो
विजयी भव !
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