२६ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ----------------------
इस ज़ुल्फ़ को क्या कहिये
इस आँख मिचोली को क्या कहिए
लहराये तो नागिन
थम जाये तो घटा
छा जाये तो चिलमन
हट जाये तो पूरनमासी
पेशानी पे आ जाये तो
तमाम दिल रुक जाये
अपनी सी पे आ जाये
तो काएनात थम जाये
घुंघराली हो या सीधी
ये इतनी सीधी भी नहीं
दिल में फस जाएँ तो
निकलती भी नहीं
ये रेशमी ज़ुल्फो का अँधेरा हे
खाली कोर्टेक्स क्यूटिकल
और मेडुला न समझना !
जूलॉजी में मत जाना जनाब
बिना मद के मदहोश कर देती हें ये !
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ----------------------
इस ज़ुल्फ़ को क्या कहिये
इस आँख मिचोली को क्या कहिए
लहराये तो नागिन
थम जाये तो घटा
छा जाये तो चिलमन
हट जाये तो पूरनमासी
पेशानी पे आ जाये तो
तमाम दिल रुक जाये
अपनी सी पे आ जाये
तो काएनात थम जाये
घुंघराली हो या सीधी
ये इतनी सीधी भी नहीं
दिल में फस जाएँ तो
निकलती भी नहीं
ये रेशमी ज़ुल्फो का अँधेरा हे
खाली कोर्टेक्स क्यूटिकल
और मेडुला न समझना !
जूलॉजी में मत जाना जनाब
बिना मद के मदहोश कर देती हें ये !
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