Sunday, March 23, 2014

२३ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ------------
मेरी जन्मभूमि !
एक छोटा सा क़स्बा ,
मेरी बस्ती
एक बड़ा मोहल्ला
एकता में अनेकता
मेरी जन्मभूमि कि विशेषता
1955 का ज़माना
चारो वर्ण,सब जातियां
हिन्दू ,मुस्लिम,सिख,जैन
सब जलते भुनते एक दुसरे से
पर चाहे चीन का हमला हो या
नेहरू के अस्थि कलश के दर्शन
सब एक हो जाते
होली दीवाली ईद दशहरा
मिल कर खाते पीते मनाते
जैन- महावीर को हिन्दू हनुमानजी मानते
जय बजरंगबली का नारा लगाते
पाक हमले के समय इकट्ठे हो कर रेडियो सुनते
पड़ोसी की चुगलियां करते ,
आज की,यानि तब की जनरेशन को कोसते
लड़के पडोसी चाची के घर में
माँ के बनाये स्वादिष्ट व्यंजन ले कर जाते
कनखियो से घर की कन्या को भी देख आते
अगले रक्षाबंधन पर माँ राखी बंधवा देती
एक अजन्मी कहानी पर विराम लगा देती
हरे भरे पीले पीले खेत सामने
दशहरा ,बुढ़वा मंगल के मेले
लाल नीले चश्मे ,कागज़ के सांप
लंगूर की मठिया ,कमल का तालाब
लाला की कुल्फी ,मंगत की बर्फी
रस्ते में जिज्जी का घर
उनके हाथों की कचौड़ियां
५ पैसे की ढाई गुझिया
दोस्त की दी हुयी गुड़िया
बस में रोज़ आना जाना
सेंगर नदी की नाव
तैरना न आते हुए भी
डूबती लड़की को बचा लेने का होसला !
क्या भूलूं क्या याद करूं
मेरी जन्मभूमि ,तुझे सलाम !

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