Saturday, March 8, 2014

०८ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित =========
आज भी गुज़रता हूँ उन राहों से
जिनमे तुम साथ होती थी
में तुम्हारे ख्यालों में होता था 
तुम मेरे ख्यालों में होती थी
रोशन चेहरा ,किताबी ऑंखें
उड़ती ज़ुल्फ़ से ढकी खुमारी ऑंखें
ज़माने से चोरी किये वो पल
सपनो को ज़मीं पर लाते वो पल
रुखसत हो चुके हें खो चुके हें
अतीत की बातें हो चुके हें
कसक उठती हे उन राहों पर
फिर भी बार बार चलने को जी चाहता हे
मालूम है कि तुम नहीं हो
पर न जाने क्यों लगता है कि
तुम सामने से आती हुई
मिल जाओगी ,कभी न जाने के लिए
पर तुम अब सिर्फ मौजूद हो
मेरे लैपटॉप का पासवर्ड बन कर
जिसे में बड़े हलके से टाइप करता हूँ
क्योकि तुम्हे बहुत ज़ख़म दिए हें ज़माने ने
में उन्हें हौले से सहला सकूं शायद ....

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