1. ३ मार्च २०१४ आज की कविता
    डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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    सुचना प्रोद्योगिकी का विकास हुआ.
    सिर्फ कम्पनियो का व्यापर बढ़ा
    हमारी जेबों में महगे खिलोने सज गए
    हम फेस बुक,व्हाट्स एप्प पर खो गए
    अगर हे सूचना प्रोद्योगिकी में दम
    तो क्यों नहीं सुन पाते हम
    उनके सन्देश ,उनकी बातें
    जो चले गए उस दुनिया में
    जहा वो हमें एक ,सिर्फ एक
    आवाज़ देने को तरस रहे हें
    और हम उनकी एक,सिर्फ एक
    आवाज़ सुन ने को तरस रहे हें
    कोई लिंक नहीं,कोई साईट नहीं,
    कोई पासवर्ड नहीं ,यू आर एल नहीं
    कोई रिक्वेस्ट नहीं आती
    कोई रिक्वेस्ट नहीं जाती
    कैसी संचार क्रांति?
    कैसी हे ये भ्रान्ति?
    एक सांस क्या रुकी
    अपने न जाने कहाँ चले जाते हे ?
    न मेसेज ,न स्टेटस ,
    सब चला जाता हे एक
    एक सांस के साथ.....
    हम देख रहे हें एक आस के साथ
    एक गैजेट का इंतज़ार
    जो सुना सके उनकी आवाज़
    जिनके बिना ज़िंदगी सूनी लगती हे
    सच,बहुत अधूरी लगती हे !