Friday, March 28, 2014

२८ मार्च २०१४ आज का अपलोड
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित ---------------------
न शायर की ग़ज़ल न खिलता कमल .
न फूलों की रानी न बहारों की मलिका
वो बस मेरी है मुझे इतना काफी है 
वो मेरे दिल में है ये अहसास काफी है
वो कांच है पर हीरे से ज़यादा रोशन
वो पीतल है पर सोने से ज़यादा सुंदर
क्यों कि वो मेरी मेहबूबा है
और मेहबूबा दिल में बसने के लिए होती है
शेयर बाज़ार में जारी करने के लिए नहीं
वो जुस्तजू है मेरी वो आरज़ू है मेरी
वो हमसफ़र वो हमनफ़स है मेरी
वो दूर हो या पास हो या आसपास हो
वो अहसास है मेरी
वो मेरी शोना .मेरी मलिका ,
वो मेरी ग़ज़ल ,वो मेरी कमल
वो मेरी शायरी की जान है
वो मेरा जिस्मो जान है
मेरा मज़हबो इमान है
अल्फाज़ कम पड़ जाते है
सुर मंद पड़ जाते हें
वो सब कुछ है ,वो सब कुछ है !

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