Tuesday, March 18, 2014

१७ मार्च २०१४ ...आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित --------------------

राम के चरणस्पर्श से मुक्त अहल्या
कान्हा के होठों से गिरी मुरली 
दोनों ही संसार ने बिसरा दी
दोनों को ही नहीं अपनाया
एक को कान्हा ने
एक को ज़माने ने
एक मुक्ता ,एक त्यक्ता
एक ख्यात,एक अज्ञात
एक होठो से स्पृशित सदा
एक स्पर्श के बाद विस्मृत सदा
भूल ही जाते हें सब
रहा हो कोई भी युग !

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