Friday, March 7, 2014

०७ मार्च २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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तुम ही हो ,बस तुम ही हो
क्यों नहीं समझती 
कि बस तुम ही हो
यहाँ भी हो,वह भी हो,
जहाँ भी हो,बस मेरी ही हो
कोई कहे कि तुम उसकी हो
पर सब जानते है कि तुम किसकी हो
आत्मा में हो ,प्राण में हो
स्वर में हो झंकार में हो
गंध में हो संस्कार में हो
मेरी हो बस मेरी हो .
हाँ मेरी हो ,मेरी हो
कएनात् में रंग ,
संगीत में स्वर
फूलों में खुश्बू
असमान में नीलिमा
सागर कि गहराई में
तुम ही तुम दिखाई देती हो
बिछड़ने की बात नहीं
तुम तो मेरे दिल में रहती हो ...

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