Wednesday, March 5, 2014

०४ मार्च २०१४ आज कि की कविता .
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
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मूल भावना पर दुनिया के दार्शनिक
पता नहीं क्या क्या कह गए 
सुन सुन कर हम परेशां हो गए
भूख,प्यास नींद ,सेक्स
ये सब पढ़ते पढ़ते ज़माने बीत गए
कोन बताये इन्हे ,मूल भावना है
सिर्फ और सिर्फ प्रेम
ये होता है या फिर नहीं होता
बस,इतनी सी बात है.
प्रेम न हो पानी से तो पी कर दिखाएं
इसके बिना खाना खा कर दिखाएं
प्रेम ही है मॉउल भावना
जो मीरा ने किया ,राधा ने किया
सिमोन डी बुवा ,अमृता प्रीतम ने किया
दांते बीट्रिस ने किया,तुमने किया ,हमने किया
भूख प्यास नींद सेक्स सब भूल कर किया
बस समर्पण किया अपने आप का
स्वत्व् का ,महामिलन के लिए ,मोक्ष जिसे कहते है


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