07 APRIL 2014 ...UPLOAD OF TODAY
DR.P.K.DIXIT
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भूतनाथ रेटर्न तो हो गया पर भूतनाथ कुछ चिंतित रहने लगा था। इलाक़े के कुछ लोगों ने पहले उससे उसकी जाति पूछ ली। फिर वे उससे उसका धर्म पूछने लगे। भूतनाथ चकरा गया। उसे मरे हुए पचास-साठ साल हो चुके थे। इस लंबे अरसे में वह अपनी जाति या धर्म के बारे में सब कुछ भूल चुका था। यूँ भी भूतों में कोई जाति-व्यवस्था तो होती नहीं। न भूतों में धर्म के नाम पर ही कोई विभाजन होता है। इसलिए भूतनाथ को कभी जाति या धर्म के बिल्ले या पट्टे की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। भूतनाथ ने अपने दिमाग़ पर बहुत ज़ोर डाला कि शायद कुछ याद आ जाए कि वह किस जाति या धर्म का था , पर निराशा ही हाथ लगी। दरअसल भूतनाथ तो इंसानियत का भूत था। यूँ भी इंसानों में अब इंसानियत कहाँ बची थी।
भूतनाथ को इलाक़े के लोग अब जाति और धर्म के धड़ों में बँटे नज़र आने लगे थे। उसे ले कर इलाक़े में तनाव हो गया। सवर्णों का यह कहना था कि भूतनाथ जैसा सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्ति अवश्य ही किसी ऊँची जाति का होगा। दूसरी ओर इलाक़े के दलितों का यह दावा था कि भूतनाथ जैसी शख़्सियत का स्वामी कोई दलित ही हो सकता था। इस विवाद के चलते सवर्णों और दलितों में तनाव बना हुआ था। दोनों पक्षों पर भूतनाथ के समझाने का भी कोई असर नहीं हो रहा था।वे अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए थे।
प्रशासन अभी इस समस्या से जूझ ही रहा था कि एक राजनीतिक दल ने यह घोषणा कर दी कि भूतनाथ गर्व से सारे हिंदू पर्व-त्योहार मनाता है। इसलिए वह एक देशभक्त हिंदू है , और वह आगामी चुनावों में उनकी राष्ट्रवादी पार्टी के लिए चुनाव-प्रचार करेगा। एक अन्य राजनीतिक दल ने इस बात पर कड़ा ऐतराज़ जताया। उस पार्टी का कहना था कि भूतनाथ तो शुरू से रोज़े रखता रहा है। वह हमेशा से ईद और मोहर्रम मनाता रहा है। इसलिए वह पक्का मुसलमान है। लिहाज़ा वह आगामी चुनावों में केवल उन्हीं की पार्टी के लिए चुनाव-प्रचार करेगा।
भूतनाथ सोचने लगा कि वो रेटर्न हुआ तो क्यों हुआ/[IDEA TAKEN FROM NET]
DR.P.K.DIXIT
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भूतनाथ रेटर्न तो हो गया पर भूतनाथ कुछ चिंतित रहने लगा था। इलाक़े के कुछ लोगों ने पहले उससे उसकी जाति पूछ ली। फिर वे उससे उसका धर्म पूछने लगे। भूतनाथ चकरा गया। उसे मरे हुए पचास-साठ साल हो चुके थे। इस लंबे अरसे में वह अपनी जाति या धर्म के बारे में सब कुछ भूल चुका था। यूँ भी भूतों में कोई जाति-व्यवस्था तो होती नहीं। न भूतों में धर्म के नाम पर ही कोई विभाजन होता है। इसलिए भूतनाथ को कभी जाति या धर्म के बिल्ले या पट्टे की ज़रूरत महसूस नहीं हुई। भूतनाथ ने अपने दिमाग़ पर बहुत ज़ोर डाला कि शायद कुछ याद आ जाए कि वह किस जाति या धर्म का था , पर निराशा ही हाथ लगी। दरअसल भूतनाथ तो इंसानियत का भूत था। यूँ भी इंसानों में अब इंसानियत कहाँ बची थी।
भूतनाथ को इलाक़े के लोग अब जाति और धर्म के धड़ों में बँटे नज़र आने लगे थे। उसे ले कर इलाक़े में तनाव हो गया। सवर्णों का यह कहना था कि भूतनाथ जैसा सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्ति अवश्य ही किसी ऊँची जाति का होगा। दूसरी ओर इलाक़े के दलितों का यह दावा था कि भूतनाथ जैसी शख़्सियत का स्वामी कोई दलित ही हो सकता था। इस विवाद के चलते सवर्णों और दलितों में तनाव बना हुआ था। दोनों पक्षों पर भूतनाथ के समझाने का भी कोई असर नहीं हो रहा था।वे अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए थे।
प्रशासन अभी इस समस्या से जूझ ही रहा था कि एक राजनीतिक दल ने यह घोषणा कर दी कि भूतनाथ गर्व से सारे हिंदू पर्व-त्योहार मनाता है। इसलिए वह एक देशभक्त हिंदू है , और वह आगामी चुनावों में उनकी राष्ट्रवादी पार्टी के लिए चुनाव-प्रचार करेगा। एक अन्य राजनीतिक दल ने इस बात पर कड़ा ऐतराज़ जताया। उस पार्टी का कहना था कि भूतनाथ तो शुरू से रोज़े रखता रहा है। वह हमेशा से ईद और मोहर्रम मनाता रहा है। इसलिए वह पक्का मुसलमान है। लिहाज़ा वह आगामी चुनावों में केवल उन्हीं की पार्टी के लिए चुनाव-प्रचार करेगा।
भूतनाथ सोचने लगा कि वो रेटर्न हुआ तो क्यों हुआ/[IDEA TAKEN FROM NET]
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