Saturday, April 5, 2014

०५ अप्रैल २०१४ की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित 
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अकेले कहाँ जाएँ हम
रहने कब देती हें अकेला तुम्हारी यादें 
मन के मरुस्थल में
हरे भरे नखलिस्तान बना देती हें यादें
गहरी उतर कर
टीस दे कर फिर सहला देती हें यादें
भूलना चाहता हूँ पर
प्यार से मन लेती हें ये यादें !

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