Monday, April 28, 2014

२८ अप्रैल २०१४ ...आज की मेरी कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित [इस कविता का किसी जीवित ,मृत या अधमरे व्यक्ति से कोई सम्बन्ध नहीं हे,और हाथी किसी दल विशेष का प्रतीक नहीं है,सत्ता का प्रतीक मात्र है ]
============इतिहास ऐसे पढ़ो न =============
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ग़ज़नवी मरते नहीं ,तमाम रूहों में रहते हैं
दिलों को तोड़ने वाले ज़माने में खूब होते हैं ....
अशोक महान भी चारों ओर दिखाई देते हैं
कत्लेआम के बाद धर्माचार्य बन जाते हैं......
हर्षवर्धनो की कोई कमी नहीं ज़माने में
जनता का पैसा धरम के नाम लूटा देते हैं ....
तुग़लक़ तो इंतजामिया में बिखरे पड़े हैं
बिना सोचे फरमान जारी किये जाते हैं .....
मुग़ल भी चारो ओर देखो बहुत से हैं
अपने भाइयो को मार कर राज कर रहे हैं .....
मुहम्मदशाह रंगीलो को अब देख लेना
दरबार में नाच रंग एक बार फिर देख लेना
अँगरेज़ तो गए ही नहीं,हमारी रूह में समां गए
काली चमड़ी में गोरे संस्कार लिए हम ही तो हैं
सरकार में आते ही आम आदमी को पीसनेवाले
सब्ज़बाग़ दिखा कर सीने पर सवार हम ही तो हैं !

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