Sunday, April 27, 2014

२७ अप्रैल २०१४ ...आज का अपलोड
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित [स्वरचित]
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तुम जो रुक जाती तो बेहतर था
कुछ थम जाती तो बेहतर था
किसी बहस में उलझ कर
सुलझ जाती तो बेहतर था
किनारा दूर हे जानम
साथ ले लेती तो बेहतर था
उड़े  हैं ज़ुल्फ़  चेहरे पे
जो सुलझती तो बेहतर था
ज़माना जलता है हमसे
कुछ और जलवाती तो बेहतर था
सब   कहते चाँद हैं तुमको
चांदनी  बन जाती तो बेहतर था

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