Thursday, April 24, 2014

२४ अप्रैल २०१४ आज की कविता 
डॉ प्रमोद दीक्षित ---------------
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बाराती ! एक अलग प्रजाति !
गर्मी में भी चमकीला सूट , टाई ,
बेवजह चमचमाते जूते
एक दर्प,घमंड से भरी चाल
लड़की वालों पर एहसान सा करता प्राणी
हर समय कुछ खाने की तलाश में घूमता
आखेटक ,संग्राहक प्रकार का प्राणी
डी जे पर हो या सड़क पर ,
पी कर डांस करता धुत प्रकार का प्राणी
कभी पुरुषत्व भूल कर नागिन बन जाता
कभी आसमान में गोलियां दागने लगता
दाढ़ी बनवाता ,कपडे प्रेस कराता
परफ्यूम के समंदर में नहाता
लड़की वालों के इंतेज़ाम में कमी निकालता
साबुन घटिया था ,फिर भी उठा लाता
खाना टेस्टी नहीं था फिर भी ठूंस कर खाता
लड़के लड़की के ऊपर चिम्पंजी मुद्रा में
दोनों हाथ रख कर ज़बरदस्ती मुस्कराता
मिले में मिले रुपये काम कह ,मुह बिचकाता
ये हे आम हिंदुस्तानी बाराती
जिसे कहीं शर्म नहीं आती
शुक्र हे ,हम आप ऐसे नहीं हैं
जो हैं ,उन्हें अक़्ल क्यों नहीं आती?

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