20,21,22,APRIL 14 UPLOAD
DR.P.DIXIT.
विकास के नाम पर हम आपसी प्रेम के विरुद्ध हो गए हैं
आगे निकलने की आपाधापी में जीवन मूल्य भूल गए हैं
निगाहों में आदर स्नेह की बजाय ईर्ष्या तैर रही है
वाणी में उष्णता की जगह चालाकी भरी हुयी है
सांस्कृतिक मूल्यों की जगह आर्थिक मूल्यों ने लेली है
अपनत्व की जगह स्वार्थी तत्व ने ले ली है
प्रेम में भी गुणवत्ता नहीं, अर्थवत्ता समां गयी है
बस आगे निकलना है ,वरना अस्तित्व हीं हो जायेंगे
बस अब तो योग्यतम ही उत्तरजीवी होगा
भले ही स्कूल बैग ,होमवर्क का बोझ असह्य हो
भले ही संस्कार पढ़ाये तो जाये ,सिखाये न जाएँ
पर अभी भी संस्कृति के कुछ द्वीप दिखाई देते हैं
सभ्यता के भयानक अंध महासागर में
इश्वर आश्वस्त है की चलो कुछ दिन और जी लें
संस्कार मर जायेगे तो कैसा इश्वर कहाँ का इश्वर !
DR.P.DIXIT.
विकास के नाम पर हम आपसी प्रेम के विरुद्ध हो गए हैं
आगे निकलने की आपाधापी में जीवन मूल्य भूल गए हैं
निगाहों में आदर स्नेह की बजाय ईर्ष्या तैर रही है
वाणी में उष्णता की जगह चालाकी भरी हुयी है
सांस्कृतिक मूल्यों की जगह आर्थिक मूल्यों ने लेली है
अपनत्व की जगह स्वार्थी तत्व ने ले ली है
प्रेम में भी गुणवत्ता नहीं, अर्थवत्ता समां गयी है
बस आगे निकलना है ,वरना अस्तित्व हीं हो जायेंगे
बस अब तो योग्यतम ही उत्तरजीवी होगा
भले ही स्कूल बैग ,होमवर्क का बोझ असह्य हो
भले ही संस्कार पढ़ाये तो जाये ,सिखाये न जाएँ
पर अभी भी संस्कृति के कुछ द्वीप दिखाई देते हैं
सभ्यता के भयानक अंध महासागर में
इश्वर आश्वस्त है की चलो कुछ दिन और जी लें
संस्कार मर जायेगे तो कैसा इश्वर कहाँ का इश्वर !
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