Saturday, April 19, 2014

19 अप्रैल 2014 आज की कविता 
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित 
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हम महान भारतीय संस्कृति के वाहक 
किस राह पर चल रहे हैं ?
उन्नत परम्पराओं को डूबने की कसम खा कर
किधर के लिए निकले हैं"
"हम भारत के लोग "
जिनका नाम संविधान निर्माता के रूप में
संविधान की प्रस्तावना में लिखा है
कसम खा चुके हैं की हम नहीं सुधरेंगे
हम "भारत को एक साम्प्रदायिक,जातिवादी,राजनीतिक,
झगड़ालू ,राष्ट्र " बनाने के लिए कृतसंकल्प हैं.
राह चलते दूसरे को आगे निकलने पर गोली मार देते हैं
चाहे शासन में जाये या प्रशासन में ,
भ्रष्ट होने की कसम खा कर प्रवेश करते हैं
जाति हमारा धर्म बन चुका है,
नागरिक बुद्धि हमारे पास नहीं
मेरा नाम ,मेरी जाति,मेरा गाव ,मेरी भाषा सर्वश्रेष्ठ
बाकी सब निकृष्ट ,नष्ट,भ्रष्ट !
अहंकार हमारा राष्ट्रीय चरित्र
आरक्षण चाहिए
सब्सिडी चाहिए ,
नौकरी चाहिए
चमकता हिंदुस्तान चाहिए
पर हम सब मिल कर
टैक्स की चोरी करेंगे और सरकार को कोसेंगे
सरकार अलादीन का जिन्न है न !
अगर भ्रष्ट है तो किसने बनाया?
आदत किसने डाली ?
कौन है सरकार में ?कौन है राजनीती में ?
हम भारत के महान लोग"
नारी पूजक देश के बलात्कारी
कमज़ोरों के दमनकारी
मातृदेवोभव के पुजारी
बात बात पर माता और बहिनो
के नाम अश्लील गलियों में पिरोनेवाले
हम भारत के लोग !!!
शर्म नहीं ,दया नहीं ,
गली गली गुंडागर्दी
चरम आवारागर्दी
ये है हमारा लोकतंत्र !
झाड़ू आये कमल आये या पंजा
हम कहाँ सुधर रहे हैं ?
कृतसंकल्प जो हैं की नहीं सुधरेंगे !

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