Thursday, April 10, 2014

11 april 2014 ki kavita
DR.P.K.DIXIT
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अनुमानों के ढेर
अनिश्चय का व्यापर
टीवी चैनलों पर
बहस अपार
अबकी बार कैसी सरकार?
जुएँ के पत्ते
तभी तक
अनिश्चित होते हैं
जब तक बिना बांटें
गड्डी के रूप में
नियति के हाथ होते हैं ...
खिलाड़ियों के बीच
बँट जाने पर
अनिश्चितता पर विराम
लग जाता है
और -
निश्चित सत्य की ओर
बढ़ते हुए
कदम दर कदम
स्थायित्व के दिशा सूचक
अन्तत :
किसी की विजय श्री की प्रतीक्षा करते हैं

अनिश्चितता के घर भी
उम्मीदों के दीये जलते हैं ....

क्योकि -
अनिश्चितता की भी
सीमा होती है .....!!!!!!
जो बस ख़त्म हुआ ही चाहती है 

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