Thursday, February 27, 2014

ट्रैनिंग की एक याद 
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित 
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1983 नैनीताल 
मुझे पी टी पसंद नहीं थी.सुबह की सीटी जब बजती थी तो हज़ार सपने टूट जाते थे .ATI में ट्रैनिंग चल रही थी .में पी टी में थक जाता था ,फिर तल्लीताल मल्लीताल की दौड़ भी तो तो थी ! एक दिन मेने बहाना बनाया कि मुझे फीवर हो रहा हे ,तो मेजर ने मुझे हॉस्पिटल में ले जा कर चेक अप करा दिया ,डॉ ने कहा कुछ नहीं हे,अब मेजर बिगड़ गया .वो हमारा ट्रेनर था .उसने मुझे हाथ में हाथ ले कर स्नो वियु तक दौड़ाया ..मेरी हालत ख़राब हो गयी .में आराम तलब प्रोफेसर !मेहनत कभी कि नहीं थी .वज़न भी बहुत ज़यादा था .सांस टूट जाती थी.फिर लौट कर इतना शानदार ब्रेक फ़ास्ट मिलता था कि सब भूल जाता था .सूखी सर्दी में लाजवाब नाश्ता !वो सर्दी अभी भी नहीं भूली मुझे .दिल ढूँढता हे फिर वही फुर्सत के रात दिन..
फिर क्लास शुरू होते थे .हम ऑफिसर कि तरह नहीं स्टूडेंट्स कि तरह पढ़ते थे ,यानी मक्कारी करते थे .मूंगफली ले कर बैठते थे ,इतनी कलाकारी से छीलते थे कि आवाज़ नहीं होती थी.ये कला जिसने सिखाई थी उस को हम साइलेंसर कहते थे .हम छिलके कारपेट के नीचे छुपा देते थे .पर एक दिन असिस्टंट डायरेक्टर ने भांप लिया .फिर क्या था ..हाथ में अरविन्द केजरीवाल का चुनाव चिन्ह पकड़ा दिया और हमने पूर्ण निष्ठां से सफाई अभियान को अंजाम दिया .
डेढ़ बजे लंच होता था हमारे साथ आईएस वाले भी थे .एन बंगाल कि लड़की थी,वो लंच न लेने के लिए रोज़ प्रण करती थी पर डेढ़ गुना खा जाती थी.उस को हम "न न करते " कहते थे.वो आज एक विभाग कि प्रमुख सचिव से रिटायर हो चुकी हें .बद्रीनाथ में मिली थी पिछले वर्ष,तो मेरी पत्नी ने पहचान लिया था .पुरानी यादें ताज़ा हुयी...

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