Thursday, February 20, 2014

२० फरबरी २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
काव्या ! मेरी मानस पुत्री !
रचता हू तुम्हे ,दिन प्रतिदिन,
शब्दो में ,छंदो में ,
वाणी और वीणा में
स्वप्न में सत्य में
काव्या !तुम अवतरित होती हो तो
पुत्री की कमी नहीं खलती
सब बेटियाँ चली जाती हें
पर तुम मेरे मन में रहती हो
छोटी सी ,नन्ही परी सी
छोटे छोटे गुलाबी हाथो वाली
रुनझुन पायलें पहने
मेरी गोद में ,सोती जगती
रोती हंसती गाती
मेरी काव्या ,मेरी बेटी

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