Wednesday, February 26, 2014

मेरी प्रशासनिक यादें -२ ..डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
मेरा पहला दिन
---------------------------------
मुरादाबाद...१. १०. १९८३
ज़िला कोषागार 
मैं वरिष्ठ कोषाधिकारी बन कर यहाँ पोस्ट हुआ था . बड़ा सा हॉल नुमा ऑफिस ...शानदार सजावट...भव्य कुर्सी मेज़...टेलीफोन..गुलदस्ते परदे ..और पब्लिक ...सब के बीच में जब मैं रिवॉल्विंग चेयर पर बैठा तो जैसे आसमान में उड़ रहा था ..मेरा स्टाफ ८३ लोगो का..सब मेरे सामने खड़े थे में डाइस पर यानि फ़िल्मी अदालत जैसे मंच पर ...सब ने परिचय दिए...अपना अपना काम बताया ..फिर मुझे बड़े अदब से ऑफिस सुपरिन्टेन्डेन्ट ने पूरा ऑफिस दिखाया ..अरे बड़ा मज़ा आ रहा था .
अब पेंशन बाँटने का टाइम हो गया था .बुज़ुर्ग पेंशनर आने शुरू हो गए थे .मेरे लिए सब कुछ नया था .इसलिए देर होने लगी.वो लोग लगे चिल्लाने..१२ बजे दोपहर तक भयानक अफरा तफरी मच गयी .में सब पूछ पूछ कर कर रहा था .हंगामा मच गया .मुझे गुस्सा आ गया .में ने ज़ोर से डांटा ..तो लोग भड़क गए ..डीएम के यहाँ पहुच गए ..बहुत नारेबाज़ी हुयी .डीएम ने एक डेप्टी कलेक्टेरभेजा तब स्थिति सम्हाल पायी ..में अनाड़ी था .पेंशनर खिलाडी हा हा हा !
शाम को डीएम ने बुला भेजा ...पंहुचा तो टेढ़ी मुस्कराहट से बोले "टी ओ साहब,हंगामा करा दिया ?में मिमियाया ...नहीं सर ..ये बात वो बात ...डीएम ने कहा "देखो दीक्षित जी ,किसी को न मत कहना ..पहला सबक याद रखना .हा हा कहते रहो.मुस्कराओ ,भले ही झापड़ मारने का मन करे भाई वो तुम्हारे अन्नदाता हे पब्लिक हे ये पब्लिक ..ये सरकार गिरा देते हे..हम तुम क्या चीज़ हे?",मेरा पहला दिन पहला सबक दे गया था .में बदल गया था ..एक दिन में ही..

No comments:

Post a Comment