२५ फरबरी २०१४ आज की कविता
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
शिशु ! एक सच्चा मानव
आलोड़ित भावनाए
स्नेह को जानता हे बस
द्वेष से कोई मुलाकात नहीं हुई
सपनो में पारियां ,चॉकलेट्स,
गुड़ियाँ ,गुड्डे,सांताक्लॉस ,
बड़े बड़े टेडी बीअर्स,?
पर ये जो सड़क पर जा रही
माँ की गोद में है
अलस,भूखा ,प्यासा,
इसके सपनो में क्या होगा ?
किसकी चाह होगी इसको?
कुछ अनुभव ही नहीं किया तो
जानेगा क्या ?
कोई तमन्ना नहीं,कोई चाह नहीं
इतनी सी उम्र में आत्मसिद्ध!
न परिया ,न गुड़ियाँ
हर बेकार पड़ी वास्तु खिलौना है उसका
माँ का दिआ हर कौर खाना है उसका
कुछ भी पहन लेना फैशन है उसका
अरे देखना ये संत कही खो न जाये,
इसका अंत कही य़ू ही न हो जाये !
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
शिशु ! एक सच्चा मानव
आलोड़ित भावनाए
स्नेह को जानता हे बस
द्वेष से कोई मुलाकात नहीं हुई
सपनो में पारियां ,चॉकलेट्स,
गुड़ियाँ ,गुड्डे,सांताक्लॉस ,
बड़े बड़े टेडी बीअर्स,?
पर ये जो सड़क पर जा रही
माँ की गोद में है
अलस,भूखा ,प्यासा,
इसके सपनो में क्या होगा ?
किसकी चाह होगी इसको?
कुछ अनुभव ही नहीं किया तो
जानेगा क्या ?
कोई तमन्ना नहीं,कोई चाह नहीं
इतनी सी उम्र में आत्मसिद्ध!
न परिया ,न गुड़ियाँ
हर बेकार पड़ी वास्तु खिलौना है उसका
माँ का दिआ हर कौर खाना है उसका
कुछ भी पहन लेना फैशन है उसका
अरे देखना ये संत कही खो न जाये,
इसका अंत कही य़ू ही न हो जाये !
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