Friday, February 28, 2014

मेरी प्रशासनिक यादें -४
डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित
देहरादून १९८७ 1987
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में देहरादून में ट्रैनिंग में था .में अग्रवाल धर्मशाला में रहता था ,परिवार के साथ .उसमे अनेक परिवार रहते थे.मेरे पड़ोस में एक पहाड़ी जसोला परिवार रहता था .माँ,बेटा और बेटी.पत्नी कि दोस्ती माँ बेटी दोनों से हो गयी.एक दिन में जब ऑफिस से आया तो वसु ,नीचे साइकिल पर बैठी रो रही थी .वो १२ क्लास में पढ़ती थी .मेने उस से कभी बात नहीं कि थी अतः मेने ऊपर आ कर पत्नी से कहा कि देख लो जा कर क्या हुआ?पत्नी ने नीचे जा कर वसु से पुछा कि क्या हुआ तो रोते रोते उसने बताया कि उसकी प्रैक्टिकल कि कॉपी गाय खा गई और अगले दिन एग्जाम था ...इस पर पत्नी ने बिना मुझसे पूछे ही वादा कर दिया कि वो बनवा देगी .मेरे लिए एक बड़ी चुनौती !में ९ बजे ले कर बैठा ,तो सुबह ४ बजे कॉपी पूरी कर ही डाली.
सुबह अविश्वास से वसु ने दरवाज़ा खटखटाया ...सोचकि हुआ न होगा ..पर कॉपी देख कर उस के चेहरे पर जो ख़ुशी संतोष और आभार मेने देखा वो अविस्मरणीय है....नीची आँखों से उसने मुझे एक अनमोल रिश्ता दिआ.बोली, भाई !में आपको नहीं भूलूँगी ..मेने उसके सर पर हाथ रखा ,मेरी थकन उतर गयी .एक प्यारी सी ,गुड़िया सी बहन जो मिल गयी /...आज भी जब बद्रीनाथजी जाते है तो रस्ते में गोचर,चमोली से गुज़रते हुए हम उसको याद करलेते है ..३ साल तक हमारा पत्र व्यवहार चलता रहा,फिर खो गयी मेरी बहन ,दुनिया कि भीड़ में .सच ,मेने ऐसा पवित्र ,निश्छल,निष्पाप चेहरा आज तक नहीं देखा ..वसु जसोला,..मेरी नन्ही सी बहन..miss you

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