Thursday, February 27, 2014

२७ फरबरी २०१४ आज की कविता
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पितृ ऋण
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डॉ प्रमोद कुमार दीक्षित 
पिता ,मेरे लिए जिनकी हर साँस चलती थी
आज वोह प्राणवायु अनुपस्थित हे जीवन से
उनकी गोद मेरी पहली गाड़ी थी
उनके कंधे जहाज़ ,
वे मुझे सुलाते थे ,लोरी गाते थे
छोटी छोटी गय्या,छोटे छोटे ग्वाल
में था उनका मदन गोपाल
कान्हा था उनका में
आठवा जीवित पुत्र !
सात पुत्र पुत्रिया खो कर मिला था में
आठवां ,दुलारा,प्यारा बालक..
पूरा जीवन लगा दिया अपना
उन्होंने मेरे लिए
क्या नहीं दिया ?लाड़प्यार दुलार
सब भरपूर,
लोग कहते थे उन्हें पुत्रभक्त पिता
उनकी अखंड आस्था मुझे नियंत्रित रखती थी
अब पढता हू की प्रशासन का अर्थ हे परवाह करना
यही तो था उनका प्रशासन !
प्यार ,परवाह,क़ुरबानी,
उनके जीवन की यही कहानी
मेरी हर इच्छा उनका लक्ष्य बन जाती थी
मेरी अनकही बात भी उन्हें सुनाई दे जाती थी
वे मेरे विश्व्कोश,वे मेरे शब्दकोष,
वे मेरे ब्रह्माण्ड ,मेरे स्मृतिशेष!
ऐसे पिता ,मेने नहीं सोचा था की कभी जायेगे,
पर प्रकृति का नियम जो ठहरा ,
चले गए ,अपने श्लोक मुझे याद करा के,
अपने विचार मुझे सोंप कर
इतनी बड़ी संपत्ति !में सम्हाल रहा हू
उनकी अमानत जो हे,
उसको लौटा रहा हू ,अपनी संतानो को,
शिष्यो को ,तुम सब को!

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