१३ फरबरी २०१४ आज की कविता..डॉ.प्रमोद दीक्षित
स्वर्गीय दुष्यंत कुमार से प्रेरित ..
हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए थी,निकली,
पर मैली हो गयी
तेरे और मेरे सीनो में आग जलनी चाहिए थी,जली,
पर बुझ गयी ,
हो गयी थी पीर ,पर्वत सी ,पिघलनी चाहिए थी,पिघली,
पर रुक गयी.
वो मुतमइन थे की पत्थर पिघल नहीं सकता ,पिघला,
पर फिर जम गया
रक्त वर्षो से नसो में खोलता रहा,
पर फिर ठंडा पड़ गया
सचमुच मसलहत आमेज़ हें सियासत के कदम
हम न समझ पाये क्योकि
हम अभी इंसान थे ...
हिमालय से गंगा निकलनी चाहिए थी,निकली,
पर मैली हो गयी
तेरे और मेरे सीनो में आग जलनी चाहिए थी,जली,
पर बुझ गयी ,
हो गयी थी पीर ,पर्वत सी ,पिघलनी चाहिए थी,पिघली,
पर रुक गयी.
वो मुतमइन थे की पत्थर पिघल नहीं सकता ,पिघला,
पर फिर जम गया
रक्त वर्षो से नसो में खोलता रहा,
पर फिर ठंडा पड़ गया
सचमुच मसलहत आमेज़ हें सियासत के कदम
हम न समझ पाये क्योकि
हम अभी इंसान थे ...
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